बर्बरीक कोन था ? और बर्बरीक को क्यों कहते हैं खाटू श्याम, जानिए रहस्य Khatu Shyam Ki Katha :
नमस्कार मित्रो, खाटू श्याम जी का धाम राजस्थान के जयपुर शहर से 81 किलोमीटर दूर मौजूद है, जहाँ भक्त दूर दूर से हर वर्ष पैदल चलकर खाटू श्याम के दर्शन करने आते है। आज आपको हम उन्ही खाटू वाले श्याम बाबा की समस्त जानकरी आपको बताने जा रहे है। हमारी जानकरी महाभारत से ली गई है।
" हारे का सहारा बाबा खाटू श्याम हमारा "
कौन थे खाटू श्याम ? Khatu Shyam Ji Story In Hindi
खाटू श्याम का नाम असल में बर्बरीक है, उनका नाम खाटू श्याम क्यों पड़ा यह हम आगे आपको बतायंगे लेकिन खाटू श्याम को जानने के लिए आपको उनके समस्त जीवन काल की और एक झलक देखना होगा। खाटू श्याम जो की बर्बरीक है वह गदा धारी पांडव भीम के पौत्र है, अर्थात वह घटोचकच के पुत्र थे। घटोचकच भीम और हिडिम्बा के पुत्र थे, हिडिम्बा एक राक्षसी थी जिसका विवाह भीम से हुआ था।
घटोच्कच का विवहा अहिलावती से हुआ था, जोकि एक नाग कन्या थी। जिनका पुत्र हुआ और उसका नाम बर्बरीक रखा गया यह वही बर्बरीक है जिनका नाम आगे चलकर खाटू श्याम भी पड़ने वाला है। अहिलावती ने आपने पुत्र बर्बरीक को अच्छी शिक्षा दी, और उन्हें सदैव भगवान श्री कृष्ण की लीला सुनाया करती थी, और मोक्ष का मार्ग पर चलने को प्रेरित किया करती थी।
बर्बरीक बड़े होगये और उन्होंने अपनी माता से पूछा की मुझे मोक्ष का सरलतम मार्ग बताओ तब उनकी माता ने उन्हें दो मार्ग बताये एक तप से दूसरा महाभारत में श्री कृष्ण भगवान है और उनके हाथो यदि किसी की म्रत्यु होती है तो वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है। तब बर्बरीक ने श्री कृष्ण के हाथो मृत्यु को स्वीकार किया परन्तु प्रश्न ये खड़ा हुआ की आख़िर श्री कृष्ण ऐसे क्यों करंगे। तब उनकी माता ने उन्हें मार्ग बताया की उन्हें इतना शक्तिशाली बनाना होगा की वह समस्त महाभारत के होने वाले संग्राम को चुनौती दे सके।
इसके लिए उनकी माता ने उन्हें नो देवियो का ध्यान कर प्र्सन करने को कहा, और उनसे अस्त्र शस्त्र वरदान में मांगने को कहा। बर्बरीक ने अपनी माता के बताये अनुसार घोर तप किया और देवियो से विजय श्री का आश्रीवाद भी गहण किया। अर्थात बर्बरीक की किसी भी लड़ाई में पराजय नहीं होगी चाहे उनके खिलाफ इंद्र भी क्यूना हो।
अब समय आगया था, जब महाभारत के समर संग्राम छिड़ा था, बर्बरीक ने महाभारत की और प्रस्थान किया और इस बात का पता भगवान श्री कृष्ण को चल गया इस लिए उन्होंने बर्बरीक को रास्ते में ही एक ब्रह्मण का वेश बना कर रोक लिया, और उनसे उनका उदेश्य पूछा तो बर्बरीक ने जवाब में कहाँ की में इस महाभारत में उसे जीता हूँगा जो हार की कगार पर होगा। तब भगवान श्री कृष्ण को पता था की हार तो कोरवो की है, और बर्बरीक उनका साथ देगा तो वरदान व्यर्थ जायेगा इस लिए भगवान ने वरदान और परिणाम को बचाने के लिए बर्बरीक से परीक्षा ली।
भगवन श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहाँ यदि तुम कहते हो की तुम मात्र एक बाण से समस्त संग्राम बदल सकते हो तो पहले कोई ऐसा कार्य करके दिखलो जिससे यह बात मानने को आये तब बर्बरीक ने पीपल के पेड़ के समस्त पतों को भेदने का कहा तो भगवान श्री कृष्ण ने परीक्षा लेने के लिए एक पता आपने पाव के नीचे दबा लिया तब बर्बरीक ने उन से कहा की वह अपना पाव हटाले, मेने अपने बाण को केवल पते भेदने का आदेश दिया है।
भगवन श्री कृष्ण ने पाव हटा लिया और समस्त पतों को बर्बरीक ने भेद दिया। भगवान श्री कृष्ण ने कहा की मेने तुम्हारी परीक्षा ली और इस परीक्षा में उत्र्तीण आये हो। और मेने तुम्हारी परीक्षा ली है तो में तुम्हारा गुरु हुआ , इस नाते तुम मुझे गुरु दक्षिणा दो. तब बर्बरीक ने भगवन से कहा आपको दक्षिणा में क्या चहिये तब भगवान ने दक्षिणा में बर्बरीक का मस्तक माँगा और बर्बरीक ने दक्षिणा स्वसरूप अपना सर काट कर दे दिया। और भगवन प्रश्न होकर बोले, हे बर्बरीक तुम्हे कलयुग में मेरा नाम श्याम से पूजा जायेगा। और तब से भीम पौत्र बर्बरीक का नाम खाटू श्याम पड़ा।
परन्तु उसके बाद भी बर्बरीक ने भगवन से एक प्र्थना की , की मुझे महाभारत का संग्राम देखना है तो भगवान ने उनके प्राण सर में ही रखे और अंत में जब समस्त संग्राम समाप्त होगया और पाडंवों की जीत हुई तब भगवन श्री कृष्ण पांचो पांडव मिलकर बर्बरीक के पास गए और पूछा की तुमने तो समस्त महाभारत का संग्राम देखा तो बताओ बर्बरीक कोन योद्धा अतिबल पूर्वक लड़ा तो बर्बरीक हंसने लगा और पांडवो ने हंसने का कारण पूछा तो कहा की मुझे संग्राम में कोई योद्धा लड़ते नहीं दिखा केवल श्री कृष्ण का चक्र चला जिसने समस्त कोरवो का विनाश किया, और उसके बाद भगवन श्री कृष्ण ने बर्बरीक को मोक्ष प्रदान किया।


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